

योग, प्राणायम, अनुलोम विलोम, और आसान क्या है?
योग क्या है ?
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योग का अर्थ जोड़ना, मिलना, प्राप्त करना, अपने अस्तित्व को लय कर देना ।
- महर्षि पातंजल के अनुसार “मन की तृत्तिओं का निरोध अर्थात शान्त करना ही योग है”।
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: 11” समाधिपाद-सूत्र-2 और भगवान श्री कृष्ण जी के अनुसार-‘समत्वं योग उच्यते’, “योगो कर्मसु कौशलम्” |
अर्थात
- हर परिस्थित्नि में सम भाव रहना तथा कर्मकुशलता ही योग है ।
योग के कितने अंग है ?
महर्षि पातंजल के अनुसार योग के आठ अंग है । ‘यमनियमा ” “०7? चर ४ ‘ 2 ** ःष्टवंगानि || साधनपाद-29 सू, जैसे :यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, घारण, ध्यान व समाधि ।
“अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा: यमा: | साधनपाद-30 सूत्र°
अर्थात्
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन सभी का नाम यम है | ‘शौचसंतोषतप: स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः ।’ साधनपाद-सूत्र-32 ।

योग में सार क्या है ?
- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान का नाम नियम है ।
: ‘तप’ अर्थात् इन्द्रिय निग्रह, ‘स्वाध्याय” अर्थात् वेद, उपनिषद, गीता, भागवत, पुराण, ब्रह्मसूत्र, गुरूग्रन्थ, बाईबल, कुरान शरीफ आदि ग्रन्थ का अध्ययन और “ईश्वर प्रणिधान’ का अर्थ ईश्वर में आत्मसमर्पण, जप-ध्यान, मनन-चिन्तन अर्थात् तललीन हो जाना |
आसन किसको कहते हैं ।
- उत्तर : ‘स्थिरसुखमासनम् ॥’ साध्नपाद-46 सूत्र ।
- अर्थात् बिना हिले-डुले एक ही स्थिति में आराम से बैठने का नाम आसन है ।3 घन््टे 45 मिनट तक जब एक स्थिति में बैठोगे तब आसन सिद्ध होगा |
यह निरन्तर अभ्यास सापेक्ष है |

आसनों के कितने विभाग है ?
उत्तर : आसनों के दो विभागों में बांटा गया है | जैसेध्यानासन व स्वस्थासन ।
- ध्यानासन पांच है :पद्मासन, सुखासन, सिद्धासन, वजासन व गोमुखासन । इन पांच आसनों के अलावा बाकी सभी आसनों को स्वस्थासन कहते हैं |
- जिनके अभ्यास से हमारा शरीर कर्मठ, रोगमुक्त व बलशाली होता है ।
- 8 वर्ष की आयु से अभी आयु के बालक व बालिका, युवक-युवती तथा स्त्री-पुरूष को नित्य-प्रतिदिन आसन अभ्यास करना चाहिए |
प्राणायाम किसको कहते हैं ?
उत्तर : ‘तस्मिन् सलि श्वासप्रश्वासयोर्गतिर्विच्छेद: प्राणायाम: ॥।
‘साधनपाद-49 सूत्र |
अर्थात्
- आसनबद्ध होने के बाद श्वास-प्रश्वास की गति के विच्छेद होने पर प्राणायाम होता है | सिद्धासन अभ्यस्त होने पर बाहरी वायु का समागम रोध हो जाता है |
- ठीक-ठीक जब प्राणायाम अभ्यास होगा नासिका के आगे रूई या सत्तु रखने से भी हिलेगा नहीं
- ‘प्राणायाम: परं तप: संसार में जितने प्रकार के तप हैं,
- प्राणायाम सबसे श्रेष्ठ है । इसलिए प्राणवायु को लेकर खेलना नहीं ।
- सिद्ध आचार्य के नजदीक रहकर सीख लेना चाहिए । टी.वी. देखकर या किताब पढ़ कर कदापि यह सभी चीजें अभ्यास नहीं करना।
आसन व प्राणायाम कब व कितना करना चाहिए ?
- उत्तर : ब्रह्ममुहूर्त अर्थात् सूर्योदय से 3 घंटे पहले उषापान के पश्चात् शौच व स्नानादि से निवृत होकर आसन-प्राणायाम अभ्यास करना चाहिए ।
- उषापान के पश्चात् शौचादि के बाद नेतिक्रिया कर लेना चाहिए |
- समस्त आसन क्रमबद्ध तरीके से अभ्यास के बाद कपालभाति अभ्यास, तत् पश्चात् प्राणायाम |
- प्राणायाम के बाद कभी भी आसन नहीं करना|
- हम जितने समय आसन करते हैं उतने समय ही प्राणायाम अभ्यास करना चाहिए ।
- आसन कं द्वारा उर्जा का क्षय होता है, प्राणायाम उस क्षय को पूरा कर देता है ।
- इसलिए आसन के बाद ही प्राणायाम करना चाहिए ।
कपालभाति को प्राणायाम कहना कितना सही है ? कपालभाति और प्राणायाम में क्या अन्तर है ?
उत्तर : कपालभाति को प्राणायाम कहना हमारी अज्ञता है | कपालभाति षट् क्रियाओं में से पञ्रचम क्रिया है । इसका अभ्यास नाभि में होता है |
- इसके अभ्यास से हमारे शरीर में अतिरिक्त मेद कम हो जाता हैं पर बाहरी वायु का समागम रोध हो जाता है |
- ठीक-ठीक जब प्राणायाम अभ्यास होगा नासिका के आगे रूई या सत्तु रखने से भी
हिलेगा नहीं ।
- ‘प्राणायाम: परं तप: संसार में जितने प्रकार के तप हैं,
- प्राणायाम सबसे श्रेष्ठ है । इसलिए प्राणवायु को लेकर खेलना नहीं ।
- सिद्ध आचार्य के नजदीक रहकर सीख लेना चाहिए । टी.वी. देखकर या किताब पढ़ कर कदापि यह सभी चीजें अभ्यास नहीं करना।
आसन व प्राणायाम कब व कितना करना चाहिए ?
उत्तर : ब्रह्ममुहूर्त अर्थात् सूर्योदय से 3 घंटे पहले उषापान के पश्चात् शौच व स्नानादि से निवृत होकर आसन-प्राणायाम अभ्यास करना चाहिए ।
- उषापान के पश्चात् शौचादि के बाद नेतिक्रिया कर लेना चाहिए |
- समस्त आसन क्रमबद्ध तरीके से अभ्यास के बाद कपालभाति अभ्यास, तत् पश्चात् प्राणायाम |
- प्राणायाम के बाद कभी भी आसन नहीं करना |
- हम जितने समय आसन करते हैं उतने समय ही प्राणायाम अभ्यास करना चाहिए ।
- आसन कं द्वारा उर्जा का क्षय होता है, प्राणायाम उस क्षय को पूरा कर देता है । इसलिए आसन के बाद ही प्राणायाम करना चाहिए ।
क्रिया क्या है ?
उत्तर : जिस के द्वारा हमारे शरीर का अंतर्मल परिष्कत होकर शरीर को रोगमुक्त व कान्तिमय बनाता है उसे क्रिया कहते हैं ।
- क्रिया 6 है ।
- नेति (सूत्रनेति, जलनेति व नासापान), धौति (वमन धौति, वारिसार धौति, सहज अग्रिसार धौति तथा वस्त्र धौति), नौली, वस्ति, कपालभाति व त्राटक |
क्रिया कब और कितनी बार अभ्यास करना चाहिए ?
उत्तर : नेति अर्थात् सूत्रनेति, जलनेति व नासापान, नौली एवं कपालभाति नियम-निष्ठा के साथ प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए ।
- धौति व वस्ति क्रिया माह में दो बार | हर दकादशी में |
- त्राटक अभ्यास तब ही करें जब ब्रह्मचर्य स्थिर होता है |
- वमन धौति कदापि रोज नहीं करना चाहिए ।
- विशेष परिस्थिति में सप्ताह में एक या दो बार भी कर सकते हैं ।
कपालभाति को प्राणायाम कहना कितना सही है ? कपालभाति और प्राणायाम में क्या अन्तर है ?
उत्तर : कपालभाति को प्राणायाम कहना हमारी अज्ञता है | कपालभाति षट् क्रियाओं में से पञ्रचम क्रिया है । इसका अभ्यास नाभि में होता है | इसके अभ्यास से हमारे शरीर में अतिरिक्त मेद कम हो जाता है, पेट मल मुक्त होता है, भूख बढ़ती है |
- शरीर में कभी रोग नहीं आ सकता | इसका गुण अवर्णनीय है |
- एक साधारण मनुष्य के लिए रा «६ मिनट कपालभाति अभ्यास करना काफी है । अर्थात 300 स्ट्राक दना है।
- एक मिनट में 60 से अधिक स्ट्रोक कदापि नहीं ।
- शुरू में 4 मिनट म 30 उसके बाद धीरे से बढ़ाना है ।
- प्राणायाम हृदयन्त्र में अभ्यास किया जाता है ।
- अत्यन्त सावधानी के साथ इसे अभ्यास करना चाहिए अन्यथा मृत्यु तक हो सकती है | तीन लयों में अभ्यास किया जाता है । शु
- रू में विलम्बित लय, क्रमश: मध्य लय, द्रुतलय में हम अभ्यास कर सकते हैं | यह एक उत्कृष्ठ तप हैं |
- इसके विधिवत अभ्यास से शरीर सदा एक ही स्थिति में रहता है |
- रोग का नामोनिशान नहीं रहेगा । मनुष्य चिर यौवन उपभोग कर सकता है ।
- दो चीजों पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। वह है जिहवा और उपस्थ (लिंग) को संयत रखना है ।
- नाड़ी शुद्धि या सहज प्राणायाम का जब तक उत्तम रूप से अभ्यास नहीं हो जाता तब तक और प्राणायाम अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
अनुलोम-विलोम क्या है?
उत्तर : प्राणायामों में तीन स्थिति होती है | जैसे 1. पूरक 2. कुम्भक एवं 3. रेचक |
- थोड़ी सी सरल भाषा में कहेंगे तो श्वास भरना, श्वास को रोकना, एवं श्वास को बाहर कर देना ।
- संसार में जितने प्राणायाम हैं सभी में पूरक व रेचक होगा ही और इस पूरक व रेचक को अनुलोग-विलोम भी कह सकते हैं |
- क्योंकि अनुलोम-विलोम प्राणायाम की एक स्थिति मात्र है, इसलिए इसे निश्चित प्राणायाम कहना सही नहीं है |
- लोग अपनी अज्ञानता के कारण नाडीश॒द्!ि प्राणायाम को अनुलोम-विलोम कह रहे हैं परन्तु आम जनता को इसके बारे में सतर्क हो जाना चाहिए |.
कब आसनप्राणायाम नहीं करना चाहिए ?
- उत्तर : दिन के मुख्य भोजन के 8 घंटे बाद तथा रात्रि के 12 घंटे बाद आसनप्राणायाम अभ्यास करना चाहिए |
- मलमूत्र का वेग लेकर कभी भी आसन-प्राणायाम नहीं करना चाहिए |
- भोजन के बाद एक हीं आसन अभ्यास कर सकते हैं,
वह है वज्रासन, गलत अभ्यास से सतर्क रहना चाहिए |
- आसन के पश्चात् अवश्य ही अवशिष्ट मल-मूत्र को त्याग करना चाहिए |